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15 Jun 2021 · 1 min read

आशा कल की

स्वर्णिम आभा नभ की ,
साहस साँसों में भरती ।
आते कल की आशा में,
निशि नित सबेरा गढ़ती ।
…विवेक दुबे”निश्चल”…

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