Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
14 Jun 2021 · 2 min read

मौसम

मौसम के तेवर बिल्कुल बदल चुके हैं कभी चालीस तो कभी इससे अधिक लगता है सभी तनाव में जी रहे हैं मौसम के कारण या कुछ ओर कुछ स्पष्ट नहीं।कहीं विनोद उपहास नहीं दिखता बस जी रहे हैं सब पता नही कैसे लगता है सब पस्त है स्वयं से या गर्मी से हर ओर शून्य है एक निस्तब्धता सी जैसी अक्सर रात को होती है पर रात भी उमस भरी चिपचिपी सी है जैसे बारिश के बाद होती है।
जीवन में कितना ही बदलाव आ चुका हो पर लगता है पुराने दिनों का सा सुख चैन अब नहीं कुछ पैसों अट्ठनी रुपया में मुस्कुराहट खरीद सकते थे और इतना एकत्र करने में एक अलग ही आनंद व उत्साह था पर अब सब कुछ होते हुए भी कुछ नहीं शायद कुछ भी नहीं वही रोज़ की दौड़ती भागती दुनिया के चलते टूटते सपने और बैर द्वेष भरी और बदलती ज़िन्दगी बस और कुछ नहीं।एक थोथलापन या दिखावटी प्रेम जो पल भर के लिए ही होता है इसी दुनिया में कुछ आज भी पहले से है सिद्धांतप्रिय वो ज़माने से स्वयं को इतर समझते हैं डगर कोई भी हो हर हाल में प्रसन्न।पर यह समझ नहीं आता कि ये सब मौसम तय करता है या कुछ और ही इतनी गर्मी कहां से आती है आदमी के अंदर और बाहर तभी अंदर और बाहर सब तरफ एक जैसा लगता है।किसी का कुछ नहीं बनता संबंध ही टूटते है उनमें भो गर्मी आती है इसीलिए शीतल रहिये क्योंकि शांत चित से लिए फैसले अक्सर लंबे चलते है।मौसम तो पल दो पल में बदल जाता है किंतु गुज़रा वक्त और अच्छे लोग बार बार नहीं आते ।

मनोज शर्मा

Language: Hindi
Tag: लेख
2 Likes · 1 Comment · 341 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

You may also like these posts

दरकती ज़मीं
दरकती ज़मीं
Namita Gupta
रंगों का बस्ता
रंगों का बस्ता
हिमांशु बडोनी (दयानिधि)
तू शबिस्ताँ सी मिरी आँखों में जो ठहर गया है,
तू शबिस्ताँ सी मिरी आँखों में जो ठहर गया है,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
*मनः संवाद----*
*मनः संवाद----*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
इंसान को इंसान ही रहने दो
इंसान को इंसान ही रहने दो
Suryakant Dwivedi
कैसे करें इन पर यकीन
कैसे करें इन पर यकीन
gurudeenverma198
मन का सावन
मन का सावन
Pratibha Pandey
खुद को मुर्दा शुमार ना करना ,
खुद को मुर्दा शुमार ना करना ,
Dr fauzia Naseem shad
अपने मन के भाव में।
अपने मन के भाव में।
Vedha Singh
जब इंसान को किसी चीज की तलब लगती है और वो तलब मस्तिष्क पर हा
जब इंसान को किसी चीज की तलब लगती है और वो तलब मस्तिष्क पर हा
Rj Anand Prajapati
मैं मोहब्बत हूं
मैं मोहब्बत हूं
Ritu Asooja
बेटी - एक वरदान
बेटी - एक वरदान
Savitri Dhayal
मेरे घर की दीवारों के कान नही है
मेरे घर की दीवारों के कान नही है
डॉ.एल. सी. जैदिया 'जैदि'
तन्हायी
तन्हायी
Dipak Kumar "Girja"
ये 'लोग' हैं!
ये 'लोग' हैं!
Srishty Bansal
🌹जिन्दगी🌹
🌹जिन्दगी🌹
Dr .Shweta sood 'Madhu'
#दूसरा_पहलू-
#दूसरा_पहलू-
*प्रणय प्रभात*
श्रीमती का उलाहना
श्रीमती का उलाहना
डॉ. श्री रमण
आरामदायक है भारतीय रेल
आरामदायक है भारतीय रेल
Santosh kumar Miri
मान न मान मैं तेरा मेहमान
मान न मान मैं तेरा मेहमान
Sudhir srivastava
"किताबें"
Dr. Kishan tandon kranti
Dard-e-Madhushala
Dard-e-Madhushala
Tushar Jagawat
अपना मन
अपना मन
Neeraj Kumar Agarwal
प्यारे मन
प्यारे मन
अनिल मिश्र
मृगनयनी
मृगनयनी
Kumud Srivastava
नहीं हम भूल पाएंगे
नहीं हम भूल पाएंगे
डिजेन्द्र कुर्रे
............
............
शेखर सिंह
मज़दूर
मज़दूर
MUSKAAN YADAV
खाली सी सड़क...
खाली सी सड़क...
शिवम "सहज"
नमक–संतुलन
नमक–संतुलन
Dr MusafiR BaithA
Loading...