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6 Jun 2021 · 1 min read

मय से रहता पूछता

***** मय से रहता पूछता ****
**** 212 222 222 12 ****
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मयकशी मय से रहता है पूछता,
मद्य में क्या कुछ पाया है पूछता।

रात दिन दारू में रहता झूमता,
क्यूं सुरा में सब खोया है पूछता।

मद्य पी कर खोता फिरता चेतना,
जिंदगी में तम छाया है पूछता।

वो पियक्कड़ प्याली में ही ढूंढ़ता,
है किधर खोई माया है पूछता।

ये नशा मदिरा का मद्यप जानता,
इस कदर क्यों भाया है पूछता।

हो शराबी मनसीरत मदहोश है,
कौन धरती पर लाया है पूछता।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

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