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30 May 2021 · 1 min read

तनहाई

इस मुकाम पर आकर तो देखो अकेले।
काट खायेंगी तुम्हें यह दर यह दीवारें।
सोचो कैसे तनहाई में रह रहे हैं बिन तुम्हारे।
हमसे भी पूछ रही हैं तुम्हारा हाल यह दर यह दीवारें।
हर एक लम्हा बीतता है तुम्हें याद करके।
हम तो बस जी ही रहे हैं मर मर के।
अब तो हमारी सांसे भी बेचैन रहती हैं।
हर वक्त कुछ न कुछ तुम्हारे बारे में कहती हैं।
तनहाई में बस कहते रहते हैं तुम आ जाओ तुम आ जाओ।
अपने आशिक को इतना मत तड़पाओ तुम आ जाओ तुम आ जाओ।

“समीर”

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