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28 May 2021 · 1 min read

कर्म और आस्था

‘जिउतिया व्रत’ यानी ऐसी सनातन धर्मावलंबी माता, जो 36 घण्टे तक के लिए निर्जला उपवास में रह रही हैं…. आख्यान के अनुसार, यह पर्व विवाहित महिला-व्रती अपने-अपने संतानों की सुख-समृद्धि के लिए करती हैं! मैं ‘माँ’ की ज्येष्ठ संतान हूँ, किन्तु अबतक न तो आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक रूप से सुखी ही हूँ, न ही समृद्ध।

बाल्यावस्था में ही जब मुझे इन सब बातों को लेकर थोड़ी-सी समझ आई, तो अक्सर ही माँ से पूछ बैठता- ‘तुम खाती नहीं हो यानी दिन-रात उपवास रहती हो । तुम नहा-धोकर स्वच्छ रहती हो यानी सबकुछ तुम ही करती हो, तो मैं कैसे सुख-समृद्ध और स्वस्थ रह पाऊँगा ?’

उत्तर में माँ सिर्फ़ यही कहती थी, जो अब भी कहती है- ‘चुप रहो, ऐसा नहीं कहते ! सोचते भी नहीं!’ मैं इसबार भी चुप रह गया हूँ, किन्तु सोचना बंद नहीं किया है । इस व्रत के लिए प्रचलित सभी गल्प आख्यान व्यवस्थित नहीं है, इसलिए इनकी कोई ऐतिहासिक कथा को मैं समझ नहीं पा रहा हूँ। मैंने विज्ञान पढ़ा है, इसलिए तर्क स्थापित कर रहा हूँ ।

मैं तो यही जानता हूँ और यह आप भी जानते होंगे कि परीक्षा निकालने के लिए अध्ययन करना पड़ता है । अगर हम नहीं पढ़ें, तो श्रद्धा, विश्वास, आशीर्वाद और पूजा-पाठ मिलकर भी परीक्षोत्तीर्ण नहीं करा सकता है ! चलिए, ‘कर्म’ ही पूजा है और इस पूजा को मानता हूँ, माँ की आस्था को भी….

Language: Hindi
Tag: लेख
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