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26 May 2021 · 1 min read

दो पहलू

धरा के ताप को
हलधर के अभिशाप को
हर लेती है बरसात।

धरा में अकाल को
प्राणियों की प्यास को
हर लेती है बरसात।

कृषकों को अनाज से
बगिया को बहार से
भर लेती है बरसात।

प्रेमियों को उन्माद से
बालकों को उत्साह से
भर लेती है बरसात।

नदियों को उफान से
कवियों को भाव से
भर लेती है बरसात।

और

जब प्रलय की रात हो
बरसात रूपी बाढ़ हो
तब किसान हताश हो
जन हानि भी अपार हो
कच्चे बने जिसके मकान
उनका तो सर्वनाश हो।

दो पहलू होते हर किसी के
प्रमोद आये हर किसी के
दुःख भी छाये हर किसी के
मुस्कान आये हर किसी के
आँसू भी आये हर किसी के

बरसात के भी रूप होते
कुछ सुनहरी बूंदे होती
कुछ निराशा के घन होते।

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