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26 May 2021 · 1 min read

धरती कहे पुकार के .

धरती कहे पुकार के ,
आसमां की ओर निहार के ।

वो जो है सखी अपनी ,
कब आयेगी बरखा रानी ।

तेरे बिन सुना आंगन मेरा ,
और बेरंग सा है आंचल मेरा ।

मेरे निर्जीव से तन मन में ,
प्राण फूंक दे सकल जीवन में ।

तेरी शीतल फुहार हे सखि !
खिलादे पादप,वृक्ष की हर पाखी ।

तेरीअभिलाषी मेरी प्रत्येक संतान ,
पशु-पक्षी,सरीसृप,समस्त जड़ चेतन ।

उमड़ – घुमड़ कर जब मेघा गरजे ,
चमक चमक के दामिनी भी गरजे ।

मस्त पवन फिर लहराने लगे ,
तुझसे मिलन की आस जगने लगे ।

मगर जब कभी तू फिर भी न बरसे ,
हाय ! जिया हमारा कितना तरसे ।

मेरी संतानों के नयनों से दिन रात ,
अश्रुयों की बूंदों से भीगे रहे गात ।

मुझसे उनका दुख देखा नहीं जाता,
और ये वियोग भी सहा नहीं जाता।

अब बरस भी जा और प्रतीक्षा मत करवा,
ओ मेरी हमजोली, मेरी जान ,मेरी मितवा ।

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