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24 May 2021 · 1 min read

बिन मौसम बरसात

बिन मौसम बरसात ,मेरे घर आई है
उस रब की सौगात ,मेरे घर लाई है

खुशियों ने डाला है डेरा आकरके
दुःख ने ली अंगड़ाई रूप सजाकर के
दिल बिच मेरे अदभुत ज्योति जलाई है
बिन मौसम बरसात ,मेरे घर आई है ..(1)

घट घट को रोशन कर डाला है आकर के
अपनी अदभुत बातों से समझाकर के
मीठा जहर पिलाकर उसने राह दिखाई है
बिन मौसम बरसात, मेरे घर आई है …(2)

रोम रोम हो आज प्रफुल्लित झूम रहा
स्वर मुरली का अन्दर बाहर गूंज रहा
आज अनोखी ज़न्नत हमने पाई है
बिन मौसम बरसात ,मेरे घर आई है …(3)

© डॉ०प्रतिभा ‘माही’

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