Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
22 May 2021 · 1 min read

मेघा (बरसात)

घन घन मेघा बरसते
मन हो गया विभोर
प्रकृति नटी नाचन लगी
शीतलता चहुँ ओर

सर सर बहती है हवा
झर झर बहता नीर
मन तरंगित हो उठा
विलसित हुआ शरीर

पानी पानी हो गया
हर पोखर,हर ताल
चहुँ दिस वातावरण में
मच गया एक धमाल

सुर संगीत धुन गूँजती
राग मेघ मल्हार
धानी चूनर में किया
कुदरत ने श्रृंगार

धरा जल नेह ताकती
कृषक देखे आकाश
मेघा तेरी राह में
कितने देखें आस।

Loading...