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22 May 2021 · 1 min read

— वक्त वक्त की बात है —

शहर बसा के गाँव ढूंढते है,
अजीब पागल है हाथ मे कुल्हाड़ी लेके छाँव ढूंढते है।

जब हरे भरे थे तो कद्र न कर पाए
आज जिधर देखो सब परेशां घूमते हैं

जो मिलती थी मुफ्त में इस प्रकर्ति से
आज कीमत चुका कर भी नादाँ घूमते हैं

समय का चक्र है वापिस आ जाता है
दुनिया गोल है बन्दे भंवर में फस ही जाता है

समय को पहचान फिर से कर हरा भरा धरातल को
तेरे जाने के बाद कोई ऐसे भटकटे तो नही मिलेंगे .

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

Language: Hindi
468 Views
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