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22 May 2021 · 1 min read

दिवस बरसात की आई , चलो झूमें चलो घूमें

दिवस बरसात की आई , चलो घूमें चलो घूमें।
गिरी जो इश्क़ की बूंदे लगी छूने चलो घूमें।

कि बादल को मुहब्बत से भरी दामन कहूं पहले
हरेक कतरा को गिरने से उसे चुमें चलो घूमें।

कि जैसे मोर के संग झूमते हैं फूल फुलवारी।
मुहब्बत साथ ले आया हमें झूमें चलो घूमें।

नया सा रंग पाकर के वो नन्हा बीज जागा है।
सजी तुलसी से आंगन में चलो घूमें चलो घूमें।

कहीं लीची कहीं जामुन कहीं आमों की तरुणाई
जिधर कटहल की खुशबू है उधर घूमें चलो घूमें।

©®दीपक झा “रुद्रा”

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