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19 May 2021 · 1 min read

तौहीन

तौहीन न करो इन जुल्फों की,
लटूरे कहकर ।
कभी इन गेसुओं में,
तुम भी उलझा करते थे ।
हम बुढिया गये तो क्या हुआ ?
आज भी हजारों आशिक है मेरे मयखाने के ।।

डां. अखिलेश बघेल
दतिया (म.प्र.)

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