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17 May 2021 · 1 min read

जिंदा लाश।

जी हां में एक लाश हूँ।
नदियों में बहती,
फूलती , पिचकती,
जलचरों , उभयचरों को आमंत्रण देती,
आओ महाभोग में सहभागी बन जाओ,
संतुष्ट होकर जाओ,
तुम्हारे उदर निर्वाह की ,
एक औचक आस हूँ,
जी हां मैं एक लाश हूँ।
एक महामारी क्या आयी,
सारी सभ्यता ,
सारी व्यवस्था,
टूटी गिरी चरमराई,
रिश्तों का , सम्बन्धो का ,
ताना बाना बिखर गया है,
संस्कारों , सभ्यताओं का,
चमकीला मुखौटा उतर गया है,
कल तक मैं राजमहल थी,
आज एक वनवास हूँ,
जी हां मैं एक लाश हूँ।
एक बोझ लकड़ियों का अकाल है,
धरती की गोद भी हुई मुहाल है,
कलेजे पर पत्थर रखकर स्वजन बहाते है,
टनों कुंतल कुंठा ले वापस वे जाते हैं,
दुनियां को लगता है,
मैं इक तमाशा हूँ,
लेकिन,
चटख इक करारा तमाचा हूँ,
सुन ले ओ ईश्वर,
मैं इक अरदास हूँ,
जी हां मैं इक लाश हूँ।

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