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17 May 2021 · 1 min read

मैं हूँ बूंद

मैं हूँ बूंद

मैं हूँ बारिश की बूंद जो अपने को
पृथ्वी के आँचल में अपने को खुश पाती हूँ
पृथ्वी अपने मे समेटे हैं हरियाली,खुशहाली
हरे भरे पेड़ लताये,न्यारे-न्यारे फूल,फल
पृथ्वी पर झरने और नदियाँ,बहती अविरल
खड़े पर्वत बहता सागर विशाल सब करते
बून्द बून्द का इंतजार।

झिलमिल सितारों की चमकते मेरे बरसने के बाद
अनंत अम्बर चमकता जैसे हो मणियों का हार
प्रात दिनकर की किरणों से चमकती धरा विशाल
शांत पवन भी बहती मंद मंद लिए मुस्कान
मानो खुशियां बांट रही आज बरसात की वो रात
मुझसे ही मिट्टी की सोंधी सी खूशबू भी करती
बून्द बून्द का इंतजार।

पेड़ो का शृंगार रंग-बिरंगे फूलों से होता
ऊर्जा पाती हूँ हूँ मैं ये सब देख
स्नेह प्रस्फुटन होता सबका मुझसे नूतन पुष्पो को देख
बरसात का करते पशु-पक्षी भी बेसब्री से इंतजार
पक्षी करते कलरव मेरे आगमन से
आनंदित होती हूँ मै भी उनकी प्यास बुझाकर ओर वो करते
बून्द बून्द का इंतजार।

सभी ऋतुओं से मिलती खुशियां बरसात की बात निराली
तभी हूँ गौरवान्वित, क्योंकि प्रकर्ति जीवन है सिर्फ़ मुझसे
मस्त हो बरसती हूँ कभी यहां कभी वहां
इठलाती, उल्लासित होती अंक पृथ्वी के गिरकर
गोद को ले मैं चूमती हूँ धरा की मानो गोद मिली हो माँ की
जीवन उत्सव मनाते गिरती हूं जब धरा पर तभी करते
बून्द बून्द का इंतजार।

डॉ मंजु सैनी
गाजियाबाद
घोषणा-यह मेरी स्वरचित रचना हैं

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