पक्षियों के शहर
पक्षी मैं तुमसे पूछता हूँ..?
तुम इस शहर में
धूल धुएं से भरे शहर में
शोर-शराबे और
बड़ी बड़ी इमारतों के शहर में
क्यों रहते हो..?
तुम्हारे पास तो पंख है
जिनसे तुम दूर आसमान में उड़ सकते हो
छोटा सा पेट है
जो थोड़े से भोजन से भर जाएगा
कोई जीवन में लालच
और लालसा नही
कोई घृणा और प्रतियोगिता नही
कुछ तिनको से तुम्हारा
घर बन जाता है संवर जाता है
रिस्ते टूटने की परवाह नही
और बड़ी बड़ी इमारतों में रहने
और बड़े बड़े मॉल से खरीदने
की लालसा नही….!
फिर क्यूँ रहते हो
इन प्रदूषित दूषित शहरों में …?
यहाँ तुम
बड़ी बड़ी इमारतों की परछत्तियों पर
टूटे पुराने कबाड़े में
या फिर धूल से सने
धुंए में दूषित हुए पेड़ों पर
अपना घोंसला रखते हो
अपने बच्चे पैदा करते हो
आखिर क्यों….??
वाहनों का शोर
फेक्टरियों का शोर
लोगों की भीड़ और समारोहों का शोर
तुमको तुम्हारे बच्चों को सोने नही देता..
तुम शहरों में दूषित खाना खाते हो
दूषित पानी पीते हो
धूल-धुएं की सांस लेते हो
पतंगों की डोरियों में फंस जाते हो
फिर भी तुम यहाँ रहते हो…?
शहर से कुछ ही दूर पर
गाँव है
वहाँ खेत है,बाग है, फल है,फूल है
तालाब है, तितली है भोरे है,कीड़े मकोड़े है
और शांति है
हर दिन केसरिया भोर होता है
और केसरिया गौ धूल
हर रात चांद-सितारे और चांदनी बातें करते है
पानी की स्वक्ष नहर के पास
गाय,भैंस,बकरी आपस मे बातें करते है
किसान के खेत अनाजो के दाने से पटे हुए है
और बाग के पेड़
स्वक्ष वायु और रंग बिरंगे फूलों से महकते रहते है।
उड़ने के लिए असीम आसमान है
कोई बड़ी इमारत नही
तुम उन गांवों में अपना डेरा क्यो नही बसाते…?
इंसान बहरा हो चुका है
उसे सुनाई नही देता
वाहनों का शोर
बीमारों और मजबूरों की चीखें,
इंसान की इन्द्रिय पत्थर हो चुकी है
उसे दूषित खाने का दूषित पानी का
स्वाद नही आता,
वो अंधा हो गया है
उसे धुंए की कालिख
उड़ती हुई धूल नही दिखती,
वो लालची और दुष्ट हो गया है,
उसे वस अपना और अपना ही दिखता है
क्योकि वह मशीन बनाते बनाते
खुद मशीन का कलपुर्जा हो गया है ।
किन्तु तुम इन सब से आजाद हो
आधार कार्ड से
पैन कार्ड से
क्रेडिट कार्ड से
एटीम कार्ड से
एसयूवी कार से
बड़े बड़े कोठी मकान से
झूठी शान से
हर दिन टूटते जज़बात से
फिर तुम क्यों इन
शहरों में रहते हो
पक्षी ये बताओ…????