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15 Apr 2021 · 1 min read

?गज़ल?

?ग़ज़ल?
बहर-12122/12122/12122/12122

चले कहाँ तुम इधर पधारो नज़र तुम्हें ही बुला रही है
नयी मुहब्बत दिले-इनायत चाहत हमें भी सिखा रही है//1

जवां दिलों की मिलन घड़ी है नज़र-नज़र से अभी लड़ी है
क़रीब आओ दिले-चमन में कसक हसीं गुल खिला रही है//2

गुलाब लब के बयान मीठे हमें लुभाएँ नये-नये से
लबे-जवानी लबों से पढ़लूँ ख़ुमारी दिल को जला रही है//3

हमें तुम्हारे तुम्हें हमारे दिले-जिग़र की क़दर मिलेगी
क़लाम तस्व्वुर की वफ़ा भी यही हमें तो बता रही है//4

??आर.एस.’प्रीतम’??

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