कोई मर्द हुआ है
मौसम के उतार चढ़ाव में ,कहीं गर्म हुआ कहीं सर्द हुआ है।
समय चक्र में पिसते मानव को ,सुख हुआ कभी दर्द हुआ है।
जिम्मेदारियों को सर पर लिए फिर रहा है दर बदर,
विपरीत हवा में कश्ती चलाता, तब जाकर कोई मर्द हुआ है।
– सिद्धार्थ पाण्डेय
मौसम के उतार चढ़ाव में ,कहीं गर्म हुआ कहीं सर्द हुआ है।
समय चक्र में पिसते मानव को ,सुख हुआ कभी दर्द हुआ है।
जिम्मेदारियों को सर पर लिए फिर रहा है दर बदर,
विपरीत हवा में कश्ती चलाता, तब जाकर कोई मर्द हुआ है।
– सिद्धार्थ पाण्डेय