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28 Mar 2021 · 1 min read

प्रवचन से कुछ न हो, आत्मसात से

विरत वह,
देखकर यह सब
दीन हीन कर्म ये।।1।।

यह ग़रीब,
वह भी ग़रीब है,
स्ववचन से।।2।।

अन्तःकरण,
कैसे पवित्रतम,
झूठ बोलते।।3।।

प्रवचन से,
कुछ न हो, मानव,
आत्मसात से ।।4।।

भीड़ तो यह,
लकीर की फकीर,
अपना कर ।।5।।

ध्येय रख ये,
उन्नति चाहिये तो,
स्वकर्म कर।।6।।

सर्वदा रह,
क्रिया में सावधान,
होने में राजी।।7।।

व्यर्थ चिन्तन,
नष्ट होता शरीर,
निस्तेज मुख।।8।।

अवगुण ये,
परनिन्दा स्तुति,
कम करो रे।।9।।

हुआ भूल जा,
नया कर कुछ यूँ,
सबसे भिन्न।।10।।

©अभिषेक पाराशर

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