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25 Mar 2021 · 2 min read

यह कैसी विडंबना

यह कैसी विडंबना

यह कैसी विडंबना है

आज पंक्षी
डाल पर दिखते नहीं हैं

कोयल की कूक
सुनाई देती नहीं है

यह कैसी विडंबना है

मोर का नृत्य तो दूर
उसके दर्शन भी
दुर्लभ हो गए हैं

यह कैसी विडंबना है

आज पक्षियों के झुण्ड का
गुलदस्ता नज़र आता नहीं है

यह कैसी विडंबना है

आज नदियों का कल – कल
नाद अपनी मधुरिम तान
कानों को सुनाता नहीं है

यह कैसी विडंबना है
गलियों में बच्चों का
लुका – छिपी का खेल
दिखता नहीं है

वो भंवरों का गुंजन
अब सुनने में आता नहीं है

यह कैसी विडंबना है

अब गलियारों में
बच्चों के वो बचपन वाले खेल
अब दिखते नहीं हैं

आज की युवा पीढ़ी को
समाज सेवा का पुण्य कार्य
भाता नहीं है

यह कैसी विडंबना है
फैशन टी वी , बिग बॉस से
लोगों का नाता जुड़ने लगा है

मंदिरों में अब भीड़ कम
होने लगी है

यह कैसी विडंबना है

होड़ सी लगने लगी है
नैतिकता को पीछे छोड़
आगे बढ़ने की
सुसंस्कारों से
अब नाता रास आता नहीं है

यह कैसी विडंबना है
रिश्तों में अब मिठास
दिखती नहीं है

अब सब कुछ फॉर्मल – फॉर्मल
सा नज़र आने लगा है

भावना शब्द ने
लोगों से नाता तोड़ लिया है

अब मानव सा मानव
नज़र आता नहीं है

यह कैसी विडंबना है
आधुनिकता , संस्कृति ,
संस्कारों पर
हावी होने लगी है

सुविचार पथ भृष्ट होने लगे हैं

किनारा अब नज़र आता नहीं है

यह कैसी विडंबना है

कहाँ जाकर रुकेगा
ये आतंकवाद का सैलाब

धर्म के नाम पर
लोगों के दिलों में पर रहा
उबाल , क्षेत्रीयता , जातिवाद
के नाम पर देश का बटवारा
कहां होगा थाव्राह

रास्ते कहाँ ले जायेंगे

पता नहीं है , अंत कहाँ है

कोई सिरा सूझता नहीं है

यह कैसी विडंबना है

धार्मिकता , सामाजिकता ,
मानवता , संस्कृति, संस्कार ,
सभ्यता , उदारता ,
मानव के क्रूर कर्मों का
निवाला बन चुके हैं

कहाँ होगा अंत
कहाँ रुकेंगे हम
कहाँ लेंगे विश्राम

कब पावन होगा ये धाम

शायद किसी को
समझ आता नहीं है

यह कैसी विडंबना है

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