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11 Mar 2021 · 1 min read

" शिव-वन्दना "

सर्प की माला, गले मेँ,
शशि, सुशोभित भाल है।
वन्दना, शिव की है, कर मेँ,
रोलि, अक्षत थाल है।।

भस्म है, तन पर,
जटा की, शीश पे भरमार है।
सृष्टि-जीवनदायिनी,
गँगा का, उद्गम द्वार है।।

पी गए गट-गट, हलाहल,
कुछ न मन पर, भार है।
कँठ नीला पड़ गया,
हर जीव का, आभार है।।

है धतूरा-भोज, प्रिय,
कटि-बन्ध, मृग की खाल है।
भँग मेँ हैं चँग, पर, मन मेँ,
जगत उद्धार है।

पुत्र हैं गणपति,
उमा-नन्दी सा, लघु परिवार है।
किन्तु, भोलेनाथ के उर मेँ,
सकल सँसार है।।

नेत्र, शिव के तीन,
सबका ही, प्रतिक्षण ध्यान है।
सत हो, चाहे तम या रज,
तिरशूल सम, कर-धार्य है।।

हैं भले ही शान्त,
पर्वत-चोटि पर, आवास है।
तान्डव, यदि हो ज़रूरी,
उसपे भी, अधिकार है।

देव हैं, देवों के जो,
“आशा” भी अपरम्पार है।
रोग से हो, मुक्त जग,
इतनी सी बस, दरकार है..!

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रचयिता-

Dr.asha kumar rastogi
M.D.(Medicine),DTCD
Ex.Senior Consultant Physician,district hospital, Moradabad.
Presently working as Consultant Physician and Cardiologist,sri Dwarika hospital,near sbi Muhamdi,dist Lakhimpur kheri U.P. 262804 M.9415559964

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