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5 Mar 2021 · 1 min read

शब्द-स्वर की स्वामिनी

बोलो जय माता की!!

घनाक्षरी छंद
शब्द-स्वर की स्वामिनी,
हे माता हंसवाहिनी-
भाव में प्रवाह कर,
छंद में विराजिए।

सुमातु हे सुहासिनी
माँ अम्ब वीणावादिनी
कंठ को सुकंठ कर,
कंठ मेंं विराजिए।

सुप्त हुई चेतना है,
वेगमयी वेदना है।
अंग -अंग हैं शिथिल,
अंग में विराजिए।

आरती सजाऊं नित्य,
हो न कोई नीच कृत्य,
आओ मेरी मातु मेरे
संग में विराजिए।

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