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4 Mar 2021 · 1 min read

बेरोजगार भ्रमित विस्व गुरु

पूछ लो कुछ भी किसी से, सबकुछ सभी को पता है।
ये काल है प्रवोधन का, या फिर चाय वाले का नशा है..?

हर रोज नया इतिहास गढ़ रहा है, कभी अशोक तो कभी अकबर कलेबर बदल रहा है ।
ये ज्ञान है पाठशाला-मदरसों का, या फिर व्हाट्सअप यूनिवर्सिटी की हवा है..?

हर कहानी की नज़ीर साथ है, हर घटना का प्रमाण साथ है ।
बौरा गयी है प्रयोगशालाएं, जब हर जबाब भारतीयों के पास है..?

ये अज़ीब इत्तफ़ाक़ है, हर रोज बदल रहा भूगोल-इतिहास है ।
अपना किसी को पता नही, पड़ोसियों की कुंडली सभी के पास है ।।

आज चला गया है कब्र में, कब्र आ गयीं है आज में ।
ये काल कौन सा है जनाव, क्या पहिया उल्टा घूम रहा है.?

कोई उसे हीरो तो कोई उसे विलेन बताता है, कोई इतिहास को सच तो कोई झूठा बताता है ।
क्या पढ़ें क्या सुने परीक्षा के लिए.?, वैसे भी रोजगार के ताबूत में आखिरी कील गढ़ा है ।।

कुछ भी कहो सबकुछ बदल गया है, विस्व चेला भारत विस्व गुरु हो गया है ।
किसी ने हड़प ली जमीन किसी ने दी घुड़की, पता नही ये कैसे हो गया है .?

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