Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
28 Feb 2021 · 2 min read

पीएचडी वाले डॉक्टर

वर्ष 1998

वैसे तो संदीप जी की किराना दुकान थी, पर वे दुकान के बाहर भी बड़े जुगाड़ू इंसान थे। खुद का पढ़ने में मन कभी लगा नहीं, इसलिए 10वीं के बाद दुकान पर बैठ गए, लेकिन समय के साथ पास ही हाईवे पर बने विश्वविद्यालय में उनकी अच्छी जान पहचान हो गई थी। अब दुकान के साथ-साथ उन्होंने उस विश्वविद्यालय में छात्रों के एडमिशन पर कमीशन लेने का काम शुरू किया। कुछ सालों बाद, अच्छे संपर्कों और कुछ घूस के साथ संदीप ने अपनी औसत बुद्धि धर्मपत्नी को डॉक्टरेट की उपाधि दिलवा दी। इस उपलब्धि से उत्साहित होकर उन्होंने अपनी साली, बहन, जीजा को भी पीएचडी धारक बनवा दिया। इन डॉक्टरेट डिग्री के बल पर इन “डॉ” को शिक्षा, अनुसंधान से जुड़े सरकारी विभागों में नौकरी मिल गई। इस तरह संदीप ने कई जानने वालों को फर्ज़ी सम्मान और नौकरियां दिलवाने में मदद की।

वर्ष 2021

संदीप की 30 साल की बेटी, हेमा का किसी काम में मन नहीं लगता था। ऊपर से वह भी औसत बुद्धि। अब पुराना ज़माना जा चुका था। वर्तमान में, पीएचडी करने के लिए कड़े नियम लागू थे और इस डिग्री में चयन से लेकर अंतिम शोध लिखने की प्रक्रिया इतनी आसान नहीं थी कि कोई भी डॉक्टरेट की उपाधि पा ले। इतना ही नहीं, उस विश्वविद्यालय पर भी ऐसे मामलों में कुछ जांच चल रही थीं। संदीप के संपर्कों ने अब जो इक्का-दुक्का जगह उपलब्ध बिकाऊ पीएचडी का दाम बताया वो आम इंसान की पहुंच से बाहर था। फिर इतने पैसे देने के बाद भी मेहनत और समय लगना ही था…जो संदीप को सिस्टम की बेईमानी लगता था।

एक दिन किसी शुभचिंतक ने संदीप की दुखती रग पर हाथ रख दिया।

“आपके परिवार में इतने पीएचडी वाले डॉक्टर हैं, बिटिया को भी कहिए…कुछ देखे इसमें।”

संदीप ने मन ही मन पहले हालात और फिर शुभचिंतक को गाली देकर लंबी सांस ली…और कहा –

“आजकल के बच्चों में…वह पहले जैसी बात कहाँ?”

समाप्त!

==*==*==*==

#ज़हन

Language: Hindi
1 Comment · 539 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

You may also like these posts

“पथ रोके बैठी विपदा”
“पथ रोके बैठी विपदा”
Neeraj kumar Soni
शमशान की राख देखकर मन में एक खयाल आया
शमशान की राख देखकर मन में एक खयाल आया
शेखर सिंह
प्रीत निभाना
प्रीत निभाना
Pratibha Pandey
A Letter to My Future Child
A Letter to My Future Child
Deep Shikha
पीर मिथ्या नहीं सत्य है यह कथा,
पीर मिथ्या नहीं सत्य है यह कथा,
संजीव शुक्ल 'सचिन'
मेरी प्रतिभा
मेरी प्रतिभा
चेतन घणावत स.मा.
हर ज़ुल्म सितम की अब दीवार गिरा दो तुम,
हर ज़ुल्म सितम की अब दीवार गिरा दो तुम,
Neelofar Khan
🌷🌷  *
🌷🌷 *"स्कंदमाता"*🌷🌷
Shashi kala vyas
साथ
साथ
Rambali Mishra
हो तेरे एतबार की बारिश
हो तेरे एतबार की बारिश
Dr fauzia Naseem shad
मन का महाभारत
मन का महाभारत
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
उलझो न
उलझो न
sheema anmol
आग पानी में लगाते क्यूँ हो
आग पानी में लगाते क्यूँ हो
Shweta Soni
मुझे उठाने वाले कहाँ जा कर सो गए हो तुम।
मुझे उठाने वाले कहाँ जा कर सो गए हो तुम।
Madhu Gupta "अपराजिता"
मुज़रिम सी खड़ी बेपनाह प्यार में
मुज़रिम सी खड़ी बेपनाह प्यार में
Er.Navaneet R Shandily
कवि गुरू रबीन्द्रनाथ टैगोर
कवि गुरू रबीन्द्रनाथ टैगोर
goutam shaw
प्याला।
प्याला।
Kumar Kalhans
सत्य होता सामने
सत्य होता सामने
दीपक नील पदम् { Deepak Kumar Srivastava "Neel Padam" }
अनकहे अल्फाज़
अनकहे अल्फाज़
Karuna Bhalla
अरुण स्वरों का प्रात
अरुण स्वरों का प्रात
Dr. Ravindra Kumar Sonwane "Rajkan"
बदला रंग पुराने पैरहन ने ...
बदला रंग पुराने पैरहन ने ...
ओनिका सेतिया 'अनु '
पहचान
पहचान
संजीवनी गुप्ता
"यहां आम बनने में ख़तरा बड़ा है।
*प्रणय प्रभात*
#नेकी ही धनवान
#नेकी ही धनवान
Radheshyam Khatik
*अनुशासन के पर्याय अध्यापक श्री लाल सिंह जी : शत शत नमन*
*अनुशासन के पर्याय अध्यापक श्री लाल सिंह जी : शत शत नमन*
Ravi Prakash
तुम कविता हो
तुम कविता हो
Arvina
उपन्यास
उपन्यास "बाप का डाटना" ( एक सबक )
JITESH BHARTI CG
"चिन्ता का चक्र"
Dr. Kishan tandon kranti
क्या हो तुम मेरे लिए (कविता)
क्या हो तुम मेरे लिए (कविता)
Monika Yadav (Rachina)
𑒧𑒻𑒟𑒱𑒪𑒲 𑒦𑒰𑒭𑒰 𑒮𑒧𑓂𑒣𑒴𑒩𑓂𑒝 𑒠𑒹𑒯𑒏 𑒩𑒏𑓂𑒞 𑒧𑒹 𑒣𑓂𑒩𑒫𑒰𑒯𑒱𑒞 𑒦 𑒩𑒯𑒪 𑒁𑒕𑒱 ! 𑒖𑒞𑒻𑒏
𑒧𑒻𑒟𑒱𑒪𑒲 𑒦𑒰𑒭𑒰 𑒮𑒧𑓂𑒣𑒴𑒩𑓂𑒝 𑒠𑒹𑒯𑒏 𑒩𑒏𑓂𑒞 𑒧𑒹 𑒣𑓂𑒩𑒫𑒰𑒯𑒱𑒞 𑒦 𑒩𑒯𑒪 𑒁𑒕𑒱 ! 𑒖𑒞𑒻𑒏
DrLakshman Jha Parimal
Loading...