अंततः उसके सपनों का दुखद अंत
अंततः उसके सपनों का दुखद अंत
अंततः उसके सपनों का
दुखद अंत हो ही गया
लड़ती रही ताउम्र वह
अपने अस्तित्व के लिए
अपने स्त्री होने का त्रास लिए
बंधन ही तेरा जीवन है
उड़ना नहीं है तुझको
जीना है तुझको
सीमाओं का भान किये
पढ़कर भी क्या कर लेगी तू
एक दिन तो पराया हो जाना है
तेरा जीवन घर का आँगन
उस आँगन की तुलसी बन जीना
सुन – सुनकर यह सब
थक चुकी थी वह
समाज की धारणाओं को छोड़
यातनाओं से मुंह मोड़
अपने अस्तित्व की जंग में
कूद पड़ी वह अग्नि में
पर सह न सकी
वह समाज की पीड़ा
भूल न पाई वह
अपने नारी होने का सत्य
मानसिक यातनाओं का बोझ
वह सह न पाई
टूट चुका था उसका सपना
आसमां को छूने का
बिखर गए थे आशा के मोती
आत्मबल भी खो गया था
जीतने को कुछ न था
हार वह सब कुछ गई थी
वह नारी थी
उसके सपनों का क्या
उसके सपनों से
किसी को क्या लेना
अंततः उसके सपनों का
दुखद अंत हो ही गया