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9 Feb 2021 · 1 min read

मैं यू ही उसको बंजर नही कहता

मैं यू ही उसको बंजर नही कहता
हर कहानी खुद मंजर नही कहता

जब बोलो अल्फाज चुनकर बोलो
घाव कितना देगा खंजर नही कहता

आंशुओं को नापें तो भला नापें कैसे
कितना गहरा है समंदर नही कहता

मोहब्बत लिखते लिखते होगया तनहा
अब हार गया है सिकंदर नही कहता

3 Likes · 9 Comments · 300 Views
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