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11 Jan 2021 · 1 min read

ग़ज़ल- हुए हम तो आखेट तिरछी नज़र के

ग़ज़ल- हुए हम तो आखेट तिरछी नज़र के
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रहे घाट के ना रहे आज घर के
हुए हम तो आखेट तिरछी नज़र के

मिला ही जनम से कलर मुझको ऐसा
मैं गोरा नहीं हो सकूँगा सँवर के

यही सोचकर मैं तो इतरा रहा हूँ
सलामत अभी बाल हैं मेरे सर के

भजन में सुनो ध्यान अपना लगाओ
तकाजे यही हैं तुम्हारी उमर के

तू बीरू नहीं, वो बसंती नहीं है
चले आओ ‘आकाश’ नीचे उतर के

– आकाश महेशपुरी
दिनांक- 09/01/2021

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