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10 Jan 2021 · 1 min read

रोया रात भर

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तुम से बिछुड़ कर मैं रोया रात भर
इक पल भी बिस्तर पर न सोया रात भर

दिल बेचैन न ही रूह को आराम
चिंता में लिप्त न चैन लिया रात भर

शिकवे शिकायतों को गिनता रहा
मैला , मलीन मन न धोया रात भर

तौबा मेरी जां प्यार की राह का
प्रेम पथ को कोसता रहा रात भर

तेरी जफ़ाओं को मैं क्या सजा दूँ
ख्याल में यह रहा सोचता रात भर

मेरी वफ़ाओं का क्या सिला दिया
सिलसिले वार रहा ढ़ूंढ़ता रात भर

दिलजले की आग को कैसे बुझाऊँ
जल की धार रहा बुझाता रात भर

आँसुओं का सैलाब पुर जोर आया
तेरे रुमाल से रहा पौंछता रात भर

मनसीरत स्नेह में कहाँ कमी रही
नेह भार को रहा तोलता रात भर
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

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