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2 Jan 2021 · 1 min read

कभी रंग नही बदले

****** कभी रंग नहीं बदले ******
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बदलते रहे साल पर हम नहीं बदले
मौसम की तरह कभी रंग नही बदले

पतझड़ में तरुवर के पल्लव झड गए
विपदाओं से टकरा के हम नहीं बदले

चुनोतियों से रहे लड़ते पर न घबराए
बिगड़े बेशक धुन पर सुर नहीं बदले

कई बार राह में मौत को गले लगाया
खेल मौत के खेल पर राह नहीं बदले

अवरोधक कर पार रहे हैं आगे बढ़ते
अवरोधों के समक्ष ज़ज्बे नहीं बदले

मंजिलों के आगे सदैव रोड़े अटकाए
भयभीत हो कभी लक्ष्य नहीं बदले

मनसीरत बहती धारा के साथ बहा है
विपरीत हवा के संग रुख नही बदले
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

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