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2 Jan 2021 · 1 min read

कोरोना कहर

हर मंजर देखो शहर का कैसा हो रहा है
शहर का शहर जैसे बंजर हो रहा है
मिट्टी का आदमी मिट्टी में समा रहा है
अकेले आया था जो अकेले जा रहा है
मौत को रो रहा नहीं कोई यहाँ
रो रहै कोरोना को लोग है
कर लो बंद खूद को घरों में कुछ दिन
ये तुम्हारें बाहर निकलने का भोग है ।
कर लो बंद खूद को घरों में कुछ दिन
ये तुम्हारें बाहर निकलने का भोग है ।
दुरीयों वाला रिश्ता ही अब सुहाता है
पास आने वाला अंदर ही अंदर डराता है
ये कैसी इंसानियत कर दी खुदा नें
मरनें वाला अपना और देह कोई ओर अपनाता है ।

सोनु सुगंध

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