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15 Dec 2020 · 1 min read

ज़रूर मेरे महकते गुलशन को किसी की नजर लगी होगी

ज़रूर मेरे महकते गुलशन को किसी की नजर लगी होगी।
जहां महकती थी खुशबू नन्हीं कलियों की,
वहां सैनिटाइजर की दवा फिजाओं में लगी होगी।
जहां बढ़ते थे कारवां स्कूल चलो अभियान के,
वहां आज वायरस से आतंकित आइसोलेशन वार्ड बनने लगे।
समय था गुरू बनकर, विश्व को अनुसरण कराने का,
आज विडम्बना देखिए वक़्त की,
कि कुछ आस्तीन के सांपों की वजह से,
हम बचाव की जानकारी करने लगे।
जहां उमड़ती थी लहर तरंगित हो ज्ञान गंगा की,
कक्षाएं चलती थीं सीख और अनुशासन की,
प्रत्येक क्षण हो ‘सत्यम शिवम् सुंदरम’ का,
यकायक
हर क्षण ,हर शख्स एक दर्द और खौफ का पैग़ाम सा देने लगा।
जहां चहकते थे स्वर नव विहग वृंद के,
गाते थे विजय गान प्रफुल्लित मन से,
सौम्य स्वभाव के थे अंकुर फिज़ा में,
यकायक करुण स्वर , चीत्कार त्राहि माम त्राहि माम
गूंजने लगा।
“रेखा “जरूर किसी दुश्मन की इस गुलिस्तां पे नज़र पड़ी होगी।

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