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14 Dec 2020 · 1 min read

मुझे सुकूँ कहाँ से मिल सकेगा

भला मुझे सुकूँ कहाँ से मिल सकेगा
उस पलंग पर जिसे ….
मज़दूरों से मजबूरन बनाया गया हो
और इससे इतर…
पहले-पहल वो एक पेड़ रहा होगा
हाँ वही जो मुझे साँसे देता है
मेरे ढलती ज़िंदगी में उसकी कमी …
काटा गया हो
उस नाज़ुक निर्जीवता को
चीरे डाली गयी होंगी कई दरमियाँ..
खरोंचा गया होगा उसको रौंदा गया हो वो
भला मुझे सुकूँ कहाँ से मिल सकेगा!!
उस पलंग पर..

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