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11 Dec 2020 · 1 min read

-अजनबी

कौन हो तुम अजनबी?
अपलक देखती
कल्पित सपन मूर्ति तुम
प्राणों को झंकृत कर
भावों में रहे
भेंट हुई जबसे
अपना- सा लगता
भूलने से ना भुलाया
संवेदना के तार
बंध गए तुमसे
अब एक फिक्र
रहता मन में
लगता संबंध रहा होगा
पिछले जन्म का
प्यारा सा रिश्ता!!!!
झलक देख तेरी
स्नेह रस बिखरता
समेट लेती
तेरी दुविधा
हक यदि मेरा होता
ओ अजनबी!!
अब तुम जाने पहचाने लगते हो।
-सीमा गुप्ता

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