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8 Dec 2020 · 1 min read

आरक्षण विरोध

ताटंक छन्द
16,14 की यति अंत 222 से

आरक्षण की बात करे जो,
कब तक इसे बढ़ाओगे।
जाति पाति का भेद-भाव ये,
कब तक तुम दिखलाओगे।।

आरक्षण जो रहा देश में,
भेद नही मिट पायेंगे।
चाहें जितनी कोशिश कर लो,
इसमे ही बट जायेंगे।।

वोट बैंक के लालच में तुम,
कब तक और बढ़ाओगे।
सबकी प्रतिभाओं का ऐसे,
कब तक हनन कराओगे।।

जीवन अस्त व्यस्त है अपना,
शासक घूस दलालों से
प्रतिभाओं का हनन हो रहा,
पिछले सत्तर सालों से।।

नही सवर्णों के घर कोई
लगी स्वर्ण की माया है।
चलकर देखो घर तुम इनके,
भूख बिलखती काया है।।

पढ़ने के पैसे न गेह में,
रूखी-सूखी खाते है।
बच्चे आज मजूरी करते,
जीवन दुखित बिताते हैं।।

दलित वर्ग को छूट मिली जो,
आज नौकरी पाते है।
अस्सी प्रतिशत वाले लड़के,
घर में ही मुरझाते हैं।।

ऐसे युवा कब तक पढ़कर,
घर पर ही पछतायेंगे।
आरक्षण हो खत्म नही परिणाम भयंकर आएंगे।।

मौलिक एवं स्वरचित
अभिनव मिश्र अदम्य
शाहजहांपुर,उ.प्र.

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