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8 Dec 2020 · 1 min read

जिस्म है घर किराए का, नहीं पक्का ठिकाना है

जिस्म है घर किराए का, नहीं पक्का ठिकाना है
कब फरमान आ जाए, खुदा के पास जाना है
मिली है देह मानुष की, भरपूर जी ले जिंदगी
दिया है मौका खुदा ने, भरपूर कर ले बंदगी
सोच आखिरत की, उठानी न पड़े शर्मिंदगी
सराय है माटी का तन,छोटी सी है जिंदगी
एक फरमान पर उसके, घर ये छोड़ जाना है
अपने सारे कर्मों का, खाता भी चुकाना है
रूबरू हो कर खुदा से, नजरें भी मिलाना है

सुरेश कुमार चतुर्वेदी

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