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29 Nov 2020 · 1 min read

बेटी

तेरे ज़ीस्त के गुलिस्ताँ में मेरी जाॅं कभी पतझड़ न आए
बसंत ही बसंत हो तितलियों सा उड़ना तू भूल न पाए

बदन के नाव में कभी कोई छेद न हो मन में कोई भेद न हो
दुनियां के समन्दर को साधने का हुनर तू कभी भूल न पाए
~ सिद्धार्थ

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