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26 Nov 2020 · 1 min read

जब जब बादल

जब जब बादल चाँद को ढकने लगते हैं ।
तब उसके सौ रूप चमकने लगते हैं ।।

नाजुकता से पलते मोती सीपी में ।
बाहर घिसकर अधिक दमकने लगते हैं ।।

बजे न जब तक वाद्य लगे बेकाम के ।
थाप पड़े स्वर ताल गमकने लगते हैं ।।

बजते हैं जब घुँघरु चौरासी धुन से ।
सुनकर सबके पाँव थिरकने लगते हैं।।

रात बीतने के मंजर मत पूछो तुम ।
पंछी अपने आप चहकने लगते हैं ।।

रहो सींचते इन गुलशन के फूलों को ।
ऋतु आने पर स्वयम महकने लगते हैं ।।

ये पलाश के फूल फागुनी मौसम में ।
अंगारों से लाल दहकने लगते हैं ।।

मतवाले ये लोग नई दौलत वाले है ।
खुदगर्जी में कदम बहकने लगते हैं ।।

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