जमीन
जमीन
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जमीन से जुड़ा रहा हूँ मैं
जमीन में ही खेला कूदा
पला बढ़ा जवान हुआ,
जमीन ही अन्नदाता बनी
जमीन ने ही संरक्षण दिया,
भरपूर प्यार अपनापन दिया।
परंतु यह विडंबना ही है
कि आज एक एककर
सब अपनी जमीन छोड़कर भाग रहें हैं,
सच से जैसे मुँह चुरा रहे हैं।
मगर कब तक मुँह चुराओगे?
इस जमीन से कब तक भाग पाओगे
आखिरकार अंत में तो
इसी जमीन में पनाह पाओगे।