Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
25 Nov 2020 · 1 min read

ऐ अक्ल होशियार कब तक

कभी तो दिल की भी सुनेगा ऐ अक्ल होशियार कब तक
अब्तर वो रस्ता ताके है तेरा, तेरा ये ऐतबार कब तक।

आकिबत जद्दोजहद में है ये नजरें नज़रों को मिलाने में
कभी तो नजर मिलाएगा आखिर रूठी अजार कब तक।

वो हसीना भी झुक जाती है जब नाराज अनमोल हो
बिखरने से पहले मान जाना ये तकरार कब तक।

चेहरे पर उसके ‘ राव’ उदासी अच्छी नहीं लगती
तू खुद को ही मना ले ये रुख सूखा प्यार कब तक।

ये मान ले के अगर अजीज से रूठा तो खुद से रूठा है
खुदा भी देखे तेरी अक्ल का तेरे दिल से इंकार कब तक।

Loading...