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22 Nov 2020 · 1 min read

ख़यालों में मेरे बसा तू ही तू है

ख़यालों में मेरे बसा तू ही तू है
तेरी जुस्तजू है तेरी आरज़ू है

निगाहों से ऐसे मिली हैं निगाहें
बिना लफ़्ज़ बोले हुई गुफ्तगू है

मेरे ज़ह् न में एक तस्वीर सी थी
जो तस्वीर में था वही हू-ब-हू है

बदन तप रहा है बहारों में मेरा
ये गर्मी ए ज़ज़्बात जैसे कि लू है

चला आ रहा जैसे जानिब तू मेरी
नज़र को ये मंज़र दिखे चार सू है

हवाओं में घिरकर फ़क़त रह गया हूँ
हवाओं में तेरे बदन की सी बू है

यही साथ ‘आनन्द’ होना था तेरे
ग़मे यार से हो गया रूबरू है

~ डॉ आनन्द किशोर

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