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20 Nov 2020 · 1 min read

लेखनी

करुण हृदय का वंदना, कमल नयन का नीर।
भाव भरी हो लेखनी,बंजर भू दे चीर।।१

जब अंतर व्याकुल हुआ, फूटें भाव हजार ।
निज छंदों से सींच कर, बहे काव्य की धार।।२

प्रेम, क्रोध, करुणा, दया, डाले तीव्र प्रभाव।
कविता बन उपजे तभी, मन के सारे भाव ।।३

मनोवेग रस भाव का, हुआ सुखद संचार ।
बनी काव्य की आत्मा, कविता का संसार।।४

जले दीप बन लेखनी,जग में भरे उजास ।
सुख -दुखका मंथन करें,बढ़े आत्म विश्वास।। ५

अवनी अंबर में चमक, जड़ चेतन में नूर।
ज्ञान दीप बन जल रहे ,कण-कण में भरपूर ।। ६

-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली

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