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15 Nov 2020 · 1 min read

आँख से अब नमी नहीं जाती

आँख से अब नमी नहीं जाती
लब से भी तिश्नगी नहीं जाती

तुम सताओ भले हमें जितना
बेरुख़ी हमसे की नहीं जाती

वस्ल का वक़्त यूँ गुज़र जाता
बात दिल की कही नहीं जाती

इश्क़ मिटने का इक जुनूँ है बस
आशिक़ी यूँ ही की नहीं जाती

यूँ समाई है मेरी रुह में तू
दूर मुझसे कभी नहीं जाती

सी तो लें हम ज़ुबान अपनी पर
सच की ख़ातिर ये सी नहीं जाती

घर की दीवारें हैं बहुत ऊँची
घर में अब धूप भी नहीं जाती

पी तो लें हम भी रोज़ रोज़ मगर
रोज़ कडुवी तो पी नहीं जाती

ज़िन्दगी जिस तरह कहे दुनिया
हमसे ‘आनन्द’ जी नहीं जाती

– डॉ आनन्द किशोर

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