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14 Nov 2020 · 1 min read

मतलब के रिश्ते नाते हैं

मतलब के रिश्ते नाते हैं
बेमतलब ग़म दे जाते हैं

होंठों पर बेशक़ ख़ामोशी
आँसू सब कुछ कह जाते हैं

किस मक़सद की ख़ातिर बोलो
आख़िर बस्ती जलवाते हैं

नफ़रत का बारूद बिछाकर
इक दूजे को लड़वाते हैं

मासूमों के जिस्मों तक पर
क्यूँ वो गोली बरसाते हैं

झूठे वादों से ये नेता
क्यूँ जनता को बहकाते हैं

लोगों की आवाज़ पे बन्दिश
लेकिन हाक़िम चिल्लाते हैं

हम कोई पत्थर के हैं क्या
हम भी ग़म से घबराते हैं

– डॉ आनन्द किशोर

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