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8 Nov 2020 · 1 min read

हनुमान जी की सुग्रीव वार्ता

हनुमान वचन
घनाक्षरी छंद

करते न राम काज,तो भी कोई बात न थी,
कभी-कभी करने की घोषणा तो करते।

बनाया था भक्ति भाव, भक्ति भले न दिखाते,
भक्ति जैसी वानरो में, भावना तो भरते।

रंक से राजा हुए थे,वे दिन तो भूलते न,
पीड़ित की पीर को भले ही नहीं हरते।

कभी-कभी जयसिया राम कर लेते नृप,
भोगवादी नदिया में डूबके न मरते ।

गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश

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