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27 Oct 2020 · 1 min read

तुम्हारा जब इशारा मिल गया है

तुम्हारा जब इशारा मिल गया है
उसी पल में किनारा मिल गया है

ख़जाना चाहिए कोई न उसको
जिसे ये दिल तुम्हारा मिल गया है

सजाए ख़्वाब फ़िर आँखों में ऐसे
वही ग़म अब दुबारा मिल गया है

मुहब्बत उनसे की तो क्या उन्ही को
सताने का इजारा मिल गया है

बताएगा हक़ीक़त प्यार की वो
मोहब्बत का जो मारा मिल गया है

चलो अब रंजोग़म के साथ जी लें
के जीने का सहारा मिल गया है

तमन्ना अब मेरी पूरी भी होगी
मेरी किस्मत का तारा मिल गया है

अंधेरे में सफ़र आसान है अब
के जुगनू का सहारा मिल गया है

नहीं बस्ती जली है धूप से ये
इसे कोई शरारा मिल गया है

ग़रीबों की ज़रा इमदाद करके
मुझे आनन्द सारा मिल गया है

मुझे ‘आनन्द’ सा लगता मगर क्यों
बशर जो बेसहारा मिल गया है

शब्दार्थ:- इजारा = ठेका / पट्टा )

– डॉ आनन्द किशोर

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