आज का संदेश =============
“शारदीय नवरात्रि” पर विशेष
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महागौरीति चाष्टमम्
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पावन नवरात्र के आठवें दिन भगवती
आदिशक्ति की पूजा “महागौरी के रूप
की जाती है। मां महागौरी का रंग
अत्यंत गोरा है इसलिए इन्हें महागौरी
के नाम से जाना जाता है। मान्यता के
अनुसार अपनी कठिन तपस्या से माँ
ने गौर वर्ण प्राप्त किया था। तभी से
इन्हें उज्जवला स्वरूपा महागौरी, धन
ऐश्वर्य प्रदायिनी, चैतन्यमयी त्रैलोक्य
पूज्य मंगला, शारीरिक मानसिक और
सांसारिक ताप का हरण करने वाली
माता महागौरी का नाम दिया गया।
नारद जी से तपस्या की शिक्षा प्राप्त
करके अपने कठिन तप से गौरवर्ण के
साथ साथ पतिरूप में भोलेनाथ को
प्राप्त करके यह उपदेश दिया है कि
जीवन में शिक्षा का क्या महत्त्व है !
बिना शिक्षा ग्रहण किए और उस पर
क्रियान्वयन किये कोई भी जीवन में
कुछ भी प्राप्त नहीं कर सकता है।
गौरी या पार्वती स्त्री का नियंत्रित,
गृहस्थ, ममतामयी रूप है जो सृष्टि को
जन्म देती है उसका पालन पोषण
करती है। नारी का वह रुप जो
समयानुसार वात्सल्य की नदी है, तो
विपरीत परिस्थितियों में अपनी संतान
के लिए बनने वाली सुनामी भी। नौ
देवियों में स्त्री की जटिल शारीरिक,
मानसिक और भावनात्मक स्थितियों
के नौ सांकेतिक रूप हैं। सृष्टि प्रक्रिया
के इन नौ चरणों में स्त्री की हर
मनोदशा सम्मान के योग्य है। जितना
सम्मान, जितनी आस्था, हम माता की
मूर्तियों में रखते है उतना ही सम्मान
यदि नारी शक्ति को, नारी को,
कन्याओं को दिया जाए तो वास्तव में
शक्ति स्वरुपा माँ की आराधना होगी
अन्यथा मनुष्य को माता की कुछ भी
कृपा नहीं प्राप्त हो सकती है।
आज हम नारी के भीतर मौजूद
स्त्री-शक्ति के सांकेतिक रूप काली,
पार्वती और दुर्गा को पहचानने का
प्रयास करें ! आज नारी का शांत
स्वरूप उग्र होता दिख रहा है, जिसका
कारण कहीं न कहीं से उनकी अशिक्षा
या उन पर हो रहे अत्याचार ही हो
सकते हैं। नारी पुरुष की ही अर्धांगिनी
ही नहीं, समाज का भी अर्धांग है।
जिस प्रकार पुरुष के पारिवारिक
जीवन में वह सुख-दुःख की
सहयोगिनी है, उसी प्रकार समाज के
उत्थान पतन में भी उसका हाथ रहता
है। किसी समाज का केवल पुरुष वर्ग
ही शिक्षित, सभ्य और चेतना सम्पन्न
हो जाए और नारी वर्ग अशिक्षित,
असंस्कृत एवं मूढ़ बना रहे तो क्या
उस समाज को उन्नत समाज कहा जा
सकेगा? ठीक-ठीक उन्नत समाज वही
कहा जा सकता है, जिसके स्त्री पुरुष
दोनों वर्ग समान रूप से शिक्षित,
सुसंस्कृत एवं चेतना सम्पन्न हों। केवल
पुरुषों के सुयोग्य बन जाने से कोई भी
काम नहीं चल सकता। उसका अपना
पारिवारिक जीवन तक सुरुचिपूर्ण
नहीं रह सकता, तब सामाजिक जीवन
की सुचारुता की सम्भावना कैसे की
जा सकती ?
पुरुष अपनी योग्यता से जो कुछ
सुख-शान्ति की परिस्थितियाँ पैदा
करेगा, उसे घर की गंवार नारी बिगाड़
देगी। किसी गाड़ी की समगति के
लिए जिस प्रकार उसके दोनों पहियों
का समान होना आवश्यक है, उसी
प्रकार क्या पारिवारिक और क्या
सामाजिक दोनों जीवनों के लिए
नारी-पुरुष का समान रूप से सुयोग्य
होना आवश्यक है। किसी भी समाज,
देश अथवा राष्ट्र की उन्नति तभी सम्भव
है,जब उसमें शिक्षा, उद्योग,
परिश्रम,पुरुषार्थ जैसे गुणों का विकास
हो। इन गुणों के अभाव में कोई भी
देश अथवा समाज उन्नति नहीं कर
सकता। यदि इन गुणों को केवल पुरुष
वर्ग में ही विकसित करके नारी को
अज्ञानावस्था में ही छोड़ दिया जायेगा
तो केवल पुरुष का गुणी होना किसी
राष्ट्र अथवा समाज की उन्नति का हेतु
नहीं बन सकता। पुरुष प्रगतिशील हो
और नारी प्रतिगामिनी, पुरुष बुद्धिमान
हो और नारी मूर्ख, तो भला किसी
समाज राष्ट्र अथवा परिवार का काम
सुचारु रूप से किस प्रकार चल
सकता है ? और जिन समाजों में ऐसा
होता है वे समस्त संसार में पिछड़े हुए
ही रह जाते हैं।
महागौरी की पूजा तब सार्थक होगी
जब हम नारी की शिक्षा और सुरक्षा
की जिम्मेदारी लेंगे, तभी वह महागौरी
की तरह शांतस्वरूपा बनेगी
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??चंदन कुमार पाण्डेयः