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21 Oct 2020 · 1 min read

जैसे सहरा में आब मुश्किल है

जैसे सहरा में आब मुश्किल है
वैसे उल्फ़त का ख़्वाब मुश्किल है

क़ातिलाना अदा की मत पूछो
उसका कोई जवाब मुश्किल है

उसकी चालों में फंस गया अब तो
जीत पाना ख़िताब मुश्किल है

बोलता झूठ है वो कब कितना
इसका रखना हिसाब मुश्किल है

ये समुन्दर बिना सफ़ीने के
पार करना जनाब मुश्किल है

एक ही बात क्या ग़लत निकली
हो गया कम रुआब मुश्किल है

मयकशी ग़म मिरा घटा देती
रोज़ पीना शराब मुश्किल है

मौत बरहक़ है सोचना फिर क्या
ज़िन्दगी की किताब मुश्किल है

वक़्त ‘आनन्द’ अब नहीं अच्छा
और किस्मत ख़राब मुश्किल है

– डॉ आनन्द किशोर

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