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17 Oct 2020 · 1 min read

मोहब्बत के नहीं आसार होंगे

मोहब्बत के नहीं आसार होंगे
ख़ुले नफ़रत के जब बाज़ार होंगे

किनारे पर खड़े लाचार होंगे
बिना कश्ती बिना पतवार होंगे

ज़ुबाँ का वार भी लगता है कडुवा
नज़र के तीर भी तलवार होंगे

ज़ुबाँ नज़रें हैं यक़ता हुस्न है फिर
न जाने और क्या हथियार होंगे

झुलस जाते हैं कितने बेख़ुदी में
बहुत से इश्क़ में बीमार होंगे

वहाँ कोई कभी जाता नहीं है
वहाँ के रास्ते पुरख़ार होंगे

मेरे दुश्मन हुए हैं मेहरबाँ अब
सुना है जल्द वो दो-चार होंगे

ग़रीबों की ज़मीनें फिर से छीनी
महल फिर से यहाँ तैयार होंगे

सदाक़त के नहीं पुल बन सके हैं
खड़े जब झूट के मीनार होंगे

अभी ‘आनन्द’ है उम्मीद बाक़ी
कभी तो आपके दीदार होंगे

शब्दार्थ:- यक़ता = unique

– डॉ आनन्द किशोर

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