Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
16 Oct 2020 · 1 min read

ख्वाहिशों की समन्दर

ख्वाहिशों की समन्दर में डूबती जा रही
पाने की चाहत नहीं मगर कुछ खोने जा रही

तिमिरांचल में लहरों की ये आवाजें
मुझे भावविभोर किए जा रही

सागर भी अब आत्ममुग्ध हो रही
देख चंचल “प्रभा” भी इसे आज मुग्ध हुए जा रही

ख्वाहिशों के समन्दर में डूबती जा रही
पाने की चाहत नहीं मगर कुछ खोने जा रही

इन नैनों से बहती अश्रु की धारा
अब सागर को भी पराजित किए जा रही

अंधियारा भी देखने को चंद्रमा आज लालायित हो रही
ख्वाहिशों की समन्दर में डूबती जा रही
पाने की चाहत नहीं मगर कुछ खोने जा रही

— प्रभा निराला

( writing14 may)

Loading...