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16 Oct 2020 · 1 min read

सुहाना था जो बचपन याद आता है

सुहाना था जो बचपन याद आता है
पुराना घर वो सावन याद आता है

जगा देता था नींदों से हमें अक्सर
तुम्हारा वो ही कंगन याद आता है

संवरते थे कभी तुम बैठकर पहरों
वो इकलौता सा दरपन याद आता है

रसोई से हमें जब-जब बुलाते थे
बजाया था जो बर्तन याद आता है

ज़रा सी बात पर तू रूठ जाती थी
तेरा करना वो अनबन याद आता है

लगाती थी सदा माथे पे जो टीका
उसी टीके का चन्दन याद आता है

पता है एक दिन तुमने कहा मुझसे
घिरें बदली तो साजन याद आता है

मुझे ख़ामोश तन्हाई में अक्सर ही
तेरी बाहों का बन्धन याद आता है

जहाँ में सब बिजी हैं धन कमाने में
किसे ‘आनन्द’ तन-मन याद आता है

– डॉ आनन्द किशोर

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