Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
16 Oct 2020 · 1 min read

इक जाॅं है जो बेकरार है तेरी इंतजारी में

तेरी एक चुप ने टूटे हुए को और कितना तोड़ा
क्या कभी जान पाएगा ?
मैंने तिनका तिनका था खुद को जोड़ा
बस तेरे दीदार को महफ़िल में चली आती थी
हर बार खुदी के लिए नया जख्म ले आती थी

कितने कांच के झरोखे में सर अपना घुसाया हमने
चोट दिल को लगी थी जाना
और तेरी अक्स ए पेशानी को सहलाया हम ने

बड़े नाज़ से उठाया अपनी ही नादानी को
तुम न मिलने थे न ही मिले मुझ को

मूड के देखा न इक बार मेरे दर्द को हमदर्द ने
तवील रातों में किया हमने गम गुसार की तलाश
चाॅंद को हजार दफा ऑंखों में ही घटते बढ़ते देखा
मुझको तो टूटते सितारों ने भी किया निराश
इक झलक की आश थी दिया ऑंखों को ख़ाक

इतनी दूरी दरम्यां अपने की सदियां लगे हमें मिलने में
बस याद रहे दो ऑंखें अब भी मुत्मइन है चलने में
इक दिल है जो धड़कता है तेरे नाम से मेरे पहलू में
इक जाॅं है जो बेकरार है तेरी इंतजारी में मचलने में
~ सिद्धार्थ

Loading...